मंगलवार, 21 सितंबर 2010

जीव की आत्मा सूर्य (नेता)

गुरु को जीव और आत्मा को सूर्य माना जाता है,गुरु से जितनी दूर सूर्य होता है उतनी दूर आत्मा का निवास जातक के शरीर से माना जाता है। जैसे गुरु किसी की लगन से तीन घर दूर बैठा है तो जीव की स्थिति को पराक्रम के स्थान में माना जायेगा और वह अपनी औकात को बडे भाइयों और बहिनों में छोटा ही मानेगा,अगर सूर्य गुरु से तीसरे यानी पंचम स्थान में विराजमान है तो आत्मा का सन्देशा अपने ही परिवार की तरफ़ जायेगा,वह अपने छोटे भाई बहिनो के स्थान में मौजूद तो होगा लेकिन उसकी आत्मा उनके परिवार पर नही होकर अपने ही परिवार पर निवास करेगी,वह छोटे भाई बहिनो से बनाकर चलेगा और उनके साथ भी चलेगा लेकिन उसका ध्यान हमेशा छोटे भाई बहिनो की तरफ़ नही होकर अपने ही भाई बहिनो की तरफ़ जायेगा।

सूर्य का विचार करने पर जब सूर्य के कामो की तरफ़ ध्यान देते है तो आज के युग में सूर्य जिसकी कुंडली में शक्तिशाली होता है वह जो काम करने के लिये आगे निकलता है उनके अन्दर वह सभी से बढ कर अपने ईगो को मानने वाला होता है उसे किसी के नीचे रहकर काम करना नही आता है वह जो भी काम करेगा वह अपने ऊंचे पर रहकर ही काम करेगा,और अपने नाम को जब तक बडा नही बनालेता है तब तक उसके दिमाग से लोगों के लिये अहम नही जायेगा,वह अपने अहम को कायम रखने के बाद अपने को संतोषी मानेगा,उसे यह कहलाना कतई पसंद नही होगा कि उसके साथ काम करने वाले उससे कहना चालू करें कि वह उनके नीचे काम करता है,इसे सुपीरियर की परिभाषा में लाते है यह सूर्य का पहला नियम है।

सूर्य का दूसरा नियम होता है कि व्यक्ति के अन्दर राजनीति को कूट कूट कर भर देता है,किसी व्यक्ति को अपनी तरफ़ मिलाने के लिये वह तरह तरह की राजनीति करेगा और जब तक सामने वाला उसके अनुसार काम नही करने लगता है या उसके लिये कोई ऐसा काम नही करने लगता है जो कि किसी भी तरह से उसका विरोध करने वाले नही होते है तब तक वह उस आदमी को लगातार नीचे दिखाने की कोशिश करता रहेगा। वह राजनीति के चलते अपने घर परिवार और समाज को भी दाव पर लगा सकता है उसके अहम के सामने यह सब बातें उसके लिये केवल और केवल सहायता देने वाली होती है। राजनीति में वह अपनी पत्नी या पति पर भी आरोप लगा सकता है और किसी भी प्रत्यारोप के लिये अपने व्यक्ति के साथ ही विश्वास घात कर सकता है।

सूर्य का तीसरा नियम होता है कि जातक मनोरंजन के साथ अपने को प्रदर्शित करने वाला होगा। उसकी बातें और हाव भाव इतने मनोरंजक होंगे कि हर कोई उसकी बात को सुनने के लिये उसके भावों को समझने के लिये उसके व्यवहार की लौकिकता को परखने के लिये काफ़ी समय तक उसके पीछे ही लगा रहेगा। वह मजमा लगाने के लिये एक तरह से उस्ताद माना जा सकता है,किसी के साथ हल्का सा भी अन्याय देखकर वह बहुत बडे अन्याय के रूप में उसे प्रस्तुत कर सकता है और एक छोटे आदमी को उसकी करतूतों को बडा बताकर आसमान पर चढा सकता है,और जिसे राजनीति वाले को नीचे दिखाना हो तो वह आसमान की ऊंचाई वाले व्यक्ति को भी नीचे उतारने के कला को रखता है,यानी उसकी मनोरंजक बातें ही चाहे वह लिखने के अन्दर हो या कहने के अन्दर हो या अपने रूप को कला को प्रदर्शित करने के रूप में वह बडी ही आसानी से सभी को मोहने वाले अन्दाज में अपने को आगे बढाने में सफ़ल हो जाता है।

सूर्य का चौथा नियम है कि जातक खुद को नेता कहलाना पसंद करता है,उसे कोई साधारण आदमी की उपाधि देता है तो उसे चिढ सी होती है लेकिन उसे किसी भी काम के अन्दर अधिक पूंछने पर वह अपने को अग्रगामी मानने लगता है। समाज के कामों में अगर उसे नही बुलाया जाता है तो चाहे लाख वह काम समाज के द्वारा सभी के हित के लिये किया जा रहा हो लेकिन वह उस काम को किसी न किसी प्रकार की नुक्ताचीनी करने के बाद उलट पलट कर ही दम लेगा,और जब उसे पूंछा जाना लगेगा तो वह उसी काम को सीधा करने के बाद अपने नाम को आगे करने के लिये ही माना जायेगा। किसी धर्म सभा का उदघाटन करने के लिये उसे बुलाया जायेगा तो उसे यह आभास हो जायेगा कि जिस धर्म के काम को उसने शुरु किया है वह उसकी ही जायदाद है और उस धर्म के काम को करने के लिये जो भी उससे बनेगा वह उस काम को आगे बढाने के लिये जो भी राजकीय या अपनी सहायता लोगों से करवाने के लिये कर सकता है करेगा। पुराने जमाने से ही ऐसे लोगों की मान्यता मानी जाती रही है,जैसे समाज में होने वाले भोजों के अन्दर कुछ लोगों को सामने रखा जाता था,और वे अपने नाम को आगे बढाने के लिये सभी के सामने स्वच्छ वस्त्र पहिन कर राम जुहार किया करते थे,लेकिन युग परिवर्तन के बाद वे समाज के अन्दर नेता कहलाने लगे और जब भी उनकी चाल लगी और वे अपने से ऊंचे व्यक्ति को नीचे उतारने के बाद उसी पद पर आसीन हो गये। राजनीतिक व्यक्ति की पहिचान यह भी होती है कि वह अपने से नीचे काम करने वाले को कभी ऊंचा नही जाने देता है,अगर उसके नीचे कोई बहुत पढा लिखा व्यक्ति भी काम कर रहा है और पद उसके पास चपरासी का है तो वह अपने पद से ऊपर नही जा सकता है,वह साम दाम दण्ड भेद से उसे नीचे ही रखने की कोशिश करेगा। इसके साथ वह व्यक्ति अपने से ऊंचे पद पर आसीन व्यक्ति को नीचे ले जाने के लिये तमाम तरह के आक्षेप लगायेगा,और हो सकता है कि राजनीति के चक्कर में और एक दूसरे की गोटी टकराने के बाद भले ही उसके प्राण चले जायें लेकिन वह नीचे दिखाने के लिये अपनी जान तक को लगा देगा।

सूर्य का पांचवा नियम होता है कि मैदान में उतरने वाले शेरों की तरह लडने वाला होता है उसके दिमाग में भले ही कूटनीति भरी हो लेकिन जनता के सामने चाहे किसी तरह का मैदान हो वह आमने सामने आकर लडने के लिये अपनी पूरी ताकत को झोंक देगा। दूसरे को हराने के लिये उसे भले ही अपने शरीर में पानी के साथ मिर्च लगानी पडे और वह मिर्च की जलन से परेशान हो सकता है लेकिन सामने वाले के लिये वह इतनी मिर्ची की रगड उसके शरीर से करेगा कि वह मिर्च के असर को अगर झेल नही पाया तो वह चारों खाने परास्त हो जायेगा। उसे धार्मिक मैदान में उतारा जाये तो वह मन्दिर मस्जिद की लडाई करवाने से नही चूकेगा और राजनीति के मामले में उतर आये तो जीती हुयी पार्टी के विरुद्ध इतना जहर उगलेगा और इतने कारनामें करवायेगा कि साधारण आदमी उस जीती हुयी पार्टी से अपनी पूरी नफ़रत बना ही लेगा।

सूर्य का छठा नियम होता है कि वह हथियार की धार को देखकर ही वार करने के लिये अपने हथियार को प्रयोग में लायेगा। उसे लगेगा कि जनता के दिमाग में अब विद्रोह पूरी तरह से भर गया है तभी वह अपनी गति विधि को अक्स्मात तेज करेगा,और जैसे जैसे उसके सामने वाला प्रत्यासी अपने को बचाने की कोशिश करेगा वह पैंतरा बदल बदल कर उसके पीछे लगा रहेगा,जैसे ही हार कर परास्त होकर सामने वाले अपने घुटने टेक देगा वह उसे हमेशा के लिये दबा देगा,और अगर हमेशा के लिये दबा नही पाया तो काल विशेष के लिये अपना दबदबा बना कर उसे छोड देगा। जैसे ही वह अपनी नयी शक्ति को लेकर सामने आयेगा,पहले तो वह सामने वाले को आगे से आगे बढने देगा,तथा अन्दरूनी तरीके से अपनी ताकत को भी देगा कि वह आगे और बढे,लेकिन जैसे ही वह बिलकुल बेभूल हो जायेगा,उसे दबोच लेगा और मैदान में आकर उसकी राजनीति को खराब बताकर अपनी राजनीति को बडी बताना चालू कर देगा।


सूर्य का सातवां नियम होता है कि वह अपनी आवाज को बुलंद करने के लिये तरह तरह के प्रयोग करेगा,वह शान्त स्थान पर चिल्लाना शुरु कर देगा,जहां नही जाना है और प्रतिबन्ध लगा है वहां पर वह अपने तरीकों से जाने की कोशिश करेगा,अपने साथ इतने लोगों को कर लेगा कि सामने वाले समझने लग जायें कि वह उनके हित की चाहता है और वह उन लोगों को ही लडाकर जो लोग जीत गये है उनके साथ आकर खडा हो जायेगा। चाहे उसके किसी सम्बन्धी का ही अहित क्यों न हो। वह अपनी सीमा को बान्ध कर चलेगा,और वह अपने क्षेत्र पर हमेशा नजर रखेगा तथा अपने कारिंदों को इस तरह से फ़ैलाये रहेगा कि अगर कोई उसके क्षेत्र में बगावत करने की कोशश करता भी है तो वह उसे अपने दाव से पछाड कर इस कदर से बेबस कर देगा कि वह अपने द्वारा की गयी बगावत को कभी सोच भी नही पायेगा। उसे कानून से मारधाड से धन से परिवार से नेस्तनाबूद कर देगा।

सूर्य का आठवां नियम होता है कि वह वशांनुगत पहिचान रखता है। अगर उससे कोई मिलने जायेगा तो वह उसके परिवार समाज मुखिया के नाम गिनाने लग जायेगा। जिस गांव से वह मिलने वाला आया होगा उसके बारे में अपनी पूरी जानकारी रखेगा। या अगर उसे आने वाले व्यक्ति के बारे में कुछ पता नही है तो वह अपने कारिदों से यह कह कर उसे कुछ समय के लिये दूर कर देगा जिससे उसके कारिंदे उसके बारे में पूरी तरह से पता करने के बाद उसे सूचना दे सकें और वह बाद में उस मिलने वाले के पूरे परिवार की हिस्ट्री बता सके और जो मिलने वाला आया है वह उसकी जानकारी का कायल होकर उसकी ही मुट्ठी में ही हमेशा के लिये बन्द हो जायेगा। इसके अलावा वह कुछ रस्मों रिवाज के समय समाज सोसाइटी के अन्दर जाकर अपनी उपस्थिति जरूर देगा,अगर साधारण जनता के बीच में कोई दुर्घटना हो गयी है तो वह अपने को वहां जरूर उपस्थित रखेगा,इसका उसे लाभ यह मिलता है कि जिसके साथ दुर्घटना हुयी है उसके अन्दर उसके प्रति दया और आदर का भाव बनेगा तथा जो दूसरे लोग वहां उत्सुकता से आये है उनके अन्दर यह ख्याल आयेगा कि वह सबका मददगार है और मदद के लिये वह समाज का मुख्य आदमी है,आगे जाकर जनता के सामने जब वह अपने को राजनीति या समाज आदि के मुखिया के रूप में अपनी उपस्थिति देगा तो जनता उसके साथ आकर उसे अपना नेता बना लेगी।

सूर्य का नवां नियम है कि वह धन सम्बन्धी किसी भी बडी जरूरत को पूरा करवाने के लिये लोगों के सामने जाकर पहले तो चंदा आदि इकट्ठा करेगा,और जैसे ही उसके पास अधिक धन इकट्ठा हो गया वह अपने काम में लेने के बाद किसी समारोह या किसी सामाजिक काम में जाकर उस धन को दान में दे देगा,और जो दान दिया जायेगा और जो काम किया जायेगा उसके अन्दर उसका हिस्सा पहले से ही मौजूद होगा। इस तरह से जनता के ही धन को जनता में देकर और उस धन से अपना ही काम चलाकर उस धन से ही अपना नाम कमाने की कला उसके अन्दर होगी। किसी गरीब की बेटी की शादी के लिये वह सरकार से भी धन दिलवायेगा,और अन्दरूनी रूप से वह जो भी धन सरकार से दिलवायेगा उसके लिये उस गरीब से कई कागजों पर दस्तखत करवा कर उससे किसी समय आने के लिये कहेगा,और जब तक वह सरकार से अधिक लेकर उस गरीब को जो रकम देगा उसके लिये वह अपनी प्रसिद्धि को जरूर करेगा,और जब उस गरीब की लडकी की शादी होगी उस शादी में जायेगा भी और अपनी उपस्थिति को देकर लडकी वालों से तथा लडके वालों से अपनी इज्जत को लेकर आयेगा,इस प्रकार से अपनी पहुंच भी बनायेगा और सामने वाले के काम से अपने भरण पोषण का भी इन्तजाम करेगा।

सूर्य का दसवां नियम है कि वह किसी भी क्षेत्र के किसी भी काम का निरूपण करना जानता होगा,जैसे किसी नदी पर पुल बनना हो तो वह अपने अन्दर इतनी काबलियत रखेगा कि इतने दाम में वह बन जाना है और सरकारी रिपोर्ट आदि को इस तरीके से बनायेगा कि उसकी आमदनी एक तो रकम में भी हो जाये और दूसरे जो माल पुल में लगे उसकी एवज में भी कमीशन उसके घर अपने आप ठेकेदार चल कर दे जायें।कारण ठेका भी उन्ही लोगों का होगा जो खुद के ही आदमी होंगे और जिस तरीके से वह कहेगा उस तरीके से वल लोग उस काम को करें। इसी प्रकार से किसी भी भवन बाजार इमारत और सडक रास्ता आदि के निर्माण से वह अपने लिये धन का बन्दोबस्त करेगा,नेता के अन्दर पहले ही एक फ़ोरमेन के गुण मौजूद होते है।

सूर्य का ग्यारहवां नियम है कि किसी भी आफ़िस को संभालने और अपने कारिंदों की हाजिरी तथा कारिंदो के काम को करवाने के लिये उसके पास गुण होंगे,वह किसी से काम चाहे मुफ़्त में ही करवायेगा लेकिन उसकी हाजिरी का पूरा बन्दोबस्त रखेगा। उसके पास जो भी काम करने के लिये आयेंगे वह उन्हे सरकार या समाज के लोगों के सामने समय पर ही प्रकट करने की कोशिश करेगा। कारण उसके काम के समय में अगर उसने काम नही करवा पाये तो लोग उसे बुरा कहना शुरु कर देंगे,उसके पास हर काम की तीन श्रेणियां हमेशा मौजूद रहती है,वह पहली श्रेणी उसी काम को देगा जहां पर काफ़ी लोग उसके काम को देखें,दूसरी श्रेणी उन लोगों के काम को देगा जहां पर उसके लिये धन और उसके नाम का इजाफ़ा हो,तीसरी श्रेणी वह उन कामो को देगा जिन कामों के अन्दर खुद के ही लोगों के काम हो और वे चाहे भले ही कितनी ही बुराइयों वाले हों लेकिन वे काम सही साबित करने के बाद भी पूरी तरह से करवा दिये जायें।

सूर्य का बारहवां नियम है कि वह किसी का भी उठकर स्वागत करता है। हर आने वाले को वह बताना चाहता है कि वह उसी के काम के लिये और उससे ही मिलने के लिये तैयार बैठा था,लेकिन जैसे ही उसे बिना किसी फ़ायदे का काम लगेगा,वह किसी अन्य काम के अन्दर मशूगल हो जायेगा और बार बार कहने के बाद भी वह उसके काम के लिये नही सुनेगा,अगर कोई कुछ कहता है तो उसे धीरे से पतली गली का रास्ता भी दिखाने के लिये अपने कारिंदों को प्रयोग करने की नीति को अपनायेगा।

सूर्य का तेरहवां नियम है कि वह इज्जत देने के मामले में जरूर सामने आयेगा,किसी राजकीय कार्य के लिये किसी अच्छी पढाई करने वाले के लिये या कोई साहस वाला काम करने के लिये वह अपने हाथ से इनाम देने के लिये अपने को हाजिर रखेगा,वह इस तरह के काम करने के बाद जमा लोगों और सम्मान के भूखे लोगों को अपने हाथ से सम्मान देकर उनके दिल में और उनका भला सोचने वालों के मन में अपनी पैठ बनायेगा।

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