बुधवार, 19 मई 2010

हमारा घर

हमारा घर एक उपवन जैसा है कोई गुलाब है कोई मोगरा है कोई चमेली है आप अगर घर मे बडे है और आप मान लीजिये कि आप गुलाब है और आप चाहते है कि सभी आप जैसे गुलाब बन जाये,सभी अपनी अपनी प्रकृति को तो बदलेंगे नही बल्कि आप अपने गुलाब वाले रूप से भी चले जायेंगे आपका जो रूप है वह दूसरों को बदलने के चक्कर में टेंसन से बदल जायेगा,आपका रंग उड जायेगा,आपकी खुशबू चली जायेगी और दूसरो के सामने जाने पर वे लोग आपकी आदत को देखकर जरूर नाक को बंद करना शुरु कर देंगे। घर के हर सदस्य को उसकी इच्छाओं के प्रति जाने से मना मत करो केवल यह देखते रहो कि वह अपनी टहनी को कहीं बाहर तो नही ले जारहा है और बाहर जाते ही उसकी टहनी को कोई तोड डालेगा या कोई जानवर आकर चर जायेगा। हमेशा सामने वाले की प्रकृति के अनुसार व्यवहार करना चाहिये। इस काल में बच्चों के प्राकतिक स्वभाव के साथ अपने मो मिलाने की कोशिश करनी चाहिये। अपनी पत्नी की प्रकृति को भी पहिचानना चाहिये,उसकी प्रकृति आप से बहुत ही भिन्न होगी,कारण पहले तो आप पुरुष है,दूसरे आप घर के मुखिया है,पत्नी तो दूसरे परिवार से आयी है वह अपने अनुसार काम करने की कोशिश करेगी उसे पता है कि उसके परिवार वह काम होता आया है जो आपके परिवार में नही होता है इसके कारण दोनो के बीच में तनाव भी हो सकता है। इस तनाव से बचने का एक ही तरीका है उसके अनुसार भी अपने को ढाल लेना चाहिये। पत्नी के घर पर अगर लौकी की सब्जी अधिक खायी जाती थी तो अपने में भी लौकी खाने की आदत को डाल लेना चाहिये,यह नही करना चाहिये कि लौकी की सब्जी आते ही गालिया शुरु कर दी,और कहना चालू कर दिया कि हमारे घर में तो लौकी कभी खाई ही नही गयी। हमारा शरीर भी एक रिस्तेदार की तरह से इस दुनिया के लोगों के साथ सम्बन्ध बनाकर ही रह सकता है अकेले रहने  के बाद कभी कभी इसके साथ कुछ भी बुरा हो सकता है,अधिक बरसात होते ही अगर घर की छ्त गिर पडी तो पडौसी के अलावा और कोई बचाने नही आने वाला,सरकार की गाडी तो तभी आयेगी जब कोई पडौसी फ़ोन करेगा। पडौसी ही घर की बाड होते है तुम्हारी अनुपस्थिति में वे ही ख्याल रखते है कि कौन घर आया है और कौन घर से गया है,यह मनुष्य की आवश्यक आदतों से एक आदत होती है। और यह आदत कभी कभी बुरी भी लगने लगती है जब हम खुद कोई बुरा काम कर रहे हों और पडौसी ने देख लिया हो,जब हम कोई बुरा काम करेंगे ही नही तो पडौसी से डर कैसा। किसी को सुधारने की कोशिश मत करो,कारण यह कलयुग है कुछ खराब हो गया तो माथे पर खुद के आकर पड जायेगी,उसने ऐसा कहा था इसलिये ऐसा हो गया है,दोषी खुद को बना दिया जायेगा और सामने वाला मौज से अपने घर चला जायेगा,यह बिना हाड मांस की जीभ को पटकने में उसे कोई दिक्कत नही आयी थी। हम किसी को तभी सुधार सकते है जब हमारे मन वचन और काया एक समान हो। मन के अन्दर जैसा हो वैसा ही वाणी से निकले और वैसा ही किया जाने लगे,तब तुम सुधार की आशा कर सकते हो। हमारे व्यवहार की उपेक्षा की जायेगी,हमारे साथ किये जाने वाले फ़र्जों से जब मुंह फ़ेरा जायेगा तभी तो कलयुग का नाम लिया जायेगा,अन्यथा यह सतयुग नही हो जाता। अक्सर यह हमारे द्वारा ही होताहै ,जब हम किसी की उपेक्षा को कर जाते है,कोई सहायता के लिये खडा होता है और हम मौज में रहते है तो उसकी बेबसी पर हंसी उडाने से हम नही चूकते,लेकिन घरां घरां में माटी रा चूल्हा, के अनुसार आज अगर मुशीबत सामने वाले पर आयी है तो कल हमारे पास भी आयेगी,आज वह लू लगने से बीमार हुआ है तो कल हम भी बाहर जाते समय लू की चपेट में आ सकते है। कोई अगर मन में गाली देता है और अन्धकार में रहकर कोई कार्य करता है तो वह तो बहुत ही बुरा होता है,मन से दी जाने वाली गाली बहुत जल्दी लगती है,अन्धकार में किया जाने वाला कार्य कोई अनाडी नही कर सकता है उसे भी अनुभव की बात ही मानी जाती है। लेकिन अन्धकार में भी किया जाने वाला कार्य उस ऊपर वाले की नजर से बच नही सकता है। एक मियां जी रोजा करते थे और जब सुबह को नहाने के लिये जाते तो दरिया के अन्दर डुबकी लगाकर पानी पी लिया करते थे,मन में सोचते कि मैं जो कर रहा हूँ वह खुदा भी नही जानता है लेकिन खुदा की नजर से कौन बचा है एक दिन जैसे ही पानी पीने के लिये मुंह खोला एक बडी सी मछली जाकर गले में अटक गयी,गूं गूं की आवाज करते हुये बाहर आये और मछली को बाहर निकाल कर चिल्लाने लगे मै जो भी करता हूँ खुदा को सभी कुछ पता है। एक व्यक्ति अगर धर्म के काम में लगा हुआ है और उसके माता पिता और परिवारी जन किसी प्रकार से दुख उठा रहे है तो वह धर्म किस काम का रह गया ,जो अपने माता पिता का नही हुआ धर्म उसका कब होगा,वह केवल ढोंग कर रहा है ऐसा समझना चाहिये। एक वैश्याने अपने आशिक से कहा कि जाकर अपनी मां का दिल लेकर आ तब तुझसे शादी करूंगी,वह भागा भागा गया और अपनी मां से अपने दिल को मांगने लगा,मां ने तुरत अपने दिल को सीना फ़ाड कर दे दिया,वह दिल लेकर रास्ते में जा रहा था,एक पत्थर की ठोकर लगी और दिल के सहित जमीन पर गिर पडा माता के दिल से आवाज आयी,बेटा चोट तो नही लगी,वह दिल लेकर वैश्या के घर पहुंचा उसने वैश्या के सामने जैसे ही दिल को रखा,वह छिटक कर दूर जा बैठी और बोली कि जो अपनी माता का नही हुआ वह मेरा क्या होगा,और उसे अपने दर से ठोकर निकाल दिया। तो धर्म करने वाला अगर अपने माता पिता का नही हुआ उसके स्वजन कष्ट में है और वह अगर धर्म करता घूम रहा है तो धर्म भी उस वैश्या की तरह से धर्म करने वाले में ठोकर मारेगा कि जो अपने कुल का समाज का और माता पिता का नही हुआ वह धर्म का किस प्रकार से हो सकता है। जो अपने व्यवहार को संतुलन में बना कर चलता है वही सच्चा धर्म करने वाला है। जो अपने को संतुलन में करने के बाद समाज में नही चलताहै वही अधर्मी है। दिन भर मेहनत करने के बाद अगर भगवान का कुछ पल ही नाम ले लिया जाये तो भी भगवान उसी प्रकार से खुश होंगे जैसे कि एक तपस्वी पर खुश होते है,इसका एक उदाहरण मैने कहीं पढा था मुझे याद नही है कि नारद जी को अहम हो गया कि वह नारायण के सच्चे भक्त है और हमेशा उन्ही को ध्यान में रखते है,नारायण को आभास हो गया कि नारद जी को अहम हो गया है,भगवान हमेशा अपने भक्त पर नजर रखते है,कि कही उनका भक्त बिगड तोनही गया है,उनके भक्त पर कोई आफ़त तो नही आ गयी है। उन्होने नारद जी को अपने पास बुलाया और बोले नारद तुम्हे अहम हो गया है कि तुम बहुत बडे भक्त हो। नारद जी ने कहा प्रभू इसके अन्दर क्या शक है,भगवान ने कहा कि जाकर पृथ्वी पर देखो तुमसे भी बडा एक भक्त पैदा हो गया है। नारद जी भगवान के बताये पते पर पहुंचे और देखा उन्होने पता एक किसान का दिया था,वह किसान सुबह को जागता और तीन बार नारायण नारायण कहता और अपने काम के अन्दर अपने को लगा लेता,शाम को खेतों से काम करने के बाद जब वह घर आता तो सोने के समय तीन बार नारायण नारायण कहता और सो जाता,नारद जी भगवान के पास आये बोले महाराज वह केवल छ: बार नारायण नारायण कहने वाला व्यक्ति इतना बडा भक्त हो गया,और मैं दिन भर रातभर केवल आपका ही नाम लेता हूँ मेरी भक्ति बेकार हो गयी। भगवान नारदजी की बात को समझ गये और उन्होने अपनी लीला शुरु कर दी,पास में बैठे एक ज्योतिषी जी ने कहना चालू कर दिया कि प्रभू आपकी साढेसाती का समय शुरु हो गया है,उसने एक तेल का कटोरा लेकर भगवान का चक्कर लगाने के लिये बोला,नारद जी को यह काम सोंपा गया,उन्होने चक्कर भी पूरा कर लिया,चक्कर लगाने के बाद भगवान ने नारद जी से पूंछा चक्कर लगाते समय कितने बार मेरा नाम लिया था,नारद जी चकरा गये और बोले कि नाम लेते तो तेल नही फ़ैल जाता,भगवान ने नारद जी से कहा कि इसी प्रकार से वह किसान भी अपना तेल जैसा कटोरा लेकर अपनी गृहस्थी चला रहा है,और उसके बाद भी मेरा छ: बार नाम लेता है,तुम्ही बताओ कि कौन बडा भक्त है।

2 टिप्‍पणियां:

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

aankhon par jor padtaa hai. kripyaa page kaa rang badaliye. text readable kariye.

Ganesh Prasad ने कहा…

बहुत खुत , बहुत की कम की बाते लिखी है आपने..
जैसे प्रवचन सुन रहा हूँ.
बहुत खूब.. लिखते रहिये..... बधाई अच्छी लेखनी के लिए