शनिवार, 10 मई 2008

प्राण क्या है ?


हर आदमी इस संसार में जन्म लेता है और जन्म लेने के बाद संसारिक गतिविधियों में शामिल रहता है,उसके खुद के कर्म उसे या तो जीवन में नाम और यश देते है या वह खुद ही अपने कर्मों से मर कट जाता है। बच्चे का जन्म पिछले समय में काफ़ी महत्वपूर्ण केवल इसलिये माना जाता था क्यों कि पहले जन्म दर बहुत कम थी,जो बच्चे पैदा भी हो जाते थे,वे किसी न किसी बीमारी के कारण या तो पूरी उम्र जीवन जी नही पाते थे,अथवा जीते भी थे तो उनके लिये बहुत से साधन जोडने पडते थे। आज जिधर देखो मनुष्य ही मारा मारा फ़िर रहा है,मनुष्य की कोई औकात नही दिखाई दे रही है,पुलिस थानों में मनुष्य की दुर्दशा हो रही है,जेल खानों में मनुष्य सड रहा है,रेलगाडियों में मनुष्य भरा चला जा रहा है बस में बैठने के लिये स्थान मनुष्य की वजह से नही है। खेती का अनाज मनुष्य खाये जा रहा है,सडक पर चलने के लिये रास्ता नही रह गये है,पानी की कमी होती जा रही है,आफ़िसों में मनुष्य काम कर रहा है,झूठ बोल रहा है,बेईमानी कर रहा है चोरी कर रहा है,मनुष्य मनुष्य के घर में ही डकैती डाल रहा है,मनुष्य मनुष्य की अस्मत को लूट रहा है,मनुष्य मनुष्य के रहने के स्थान को हडपने के चक्कर में कितने ही जाल उसके सामने फ़ेंक रहा है,यह सब कोई जानवर तो कर नही रहा है,केवल मनुष्य ही कर रहा है,कहीं से भगवान तो आज्ञा दे नही रहे है कि जाओ उस मनुष्य को बन्दूक से मार डालो,इस धरती को इतना विदीर्ण कर दिया है कि अपनी अपनी सीमायें मनुष्यों ने बांध रखीं है,मनुष्य मनुष्य के देश में नही जा सकता है,अगर बिना मनुष्य की इजाजत से जाता है तो मनुष्य ही मनुष्य को मार डालता है,कहाँ मनुष्य को मनुष्य की रक्षा करनी चाहिये और कहां मनुष्य खुद ही मनुष्य को मारने के लिये हथियार बना रहा है,मनुष्य ने अपनी अपनी सीमायें बनाकर एक दूसरे की सीमा में जाने से मना कर दिया है,अगर कोई किसी के पास जाना चाहता है तो वह जा नही सकता है,मनुष्य के देश की सीमा में मनुष्य प्रवेश इसलिये नही कर सकता है कि मनुष्य ने अपने धर्म का बाजा बजा कर सभी को बता दिया है कि वह उस धर्म की सीमा के अन्दर निवास करता है और उस धर्म की सीमा में दूसरे धर्म का मनुष्य प्रवेश नही कर सकता है,मनुष्य धर्म के लिये एक दूसरे को मारे डाल रहा है,मनुष्य धर्म के नाम पर राज्य कर रहा है,मनुष्य की ही जार जार अवस्था के साथ लगातार खेल रहा है,जो जितनी चालाकी से मनुष्य के साथ दुराचार कर लेता है वह बहुत ही पढा लिखा व्यक्ति कहलाता है,उसे लोग बहुत विद्वान समझने लगते है,जो जितना अच्छा लूटना जानता है वह उतना ही बडा आदमी बन जाता है,एक मनुष्य जून की तपती दोपहर में सडक पर नंगे पैर जा रहा है तो दूसरा मनुष्य बडे आराम से ठंडी कार में आराम से सो कर जा रहा है,एक मनुष्य बाजार के कचरे से खाना खोजकर खा रहा है तो दूसरा आराम से बडे होटल में बैठ कर खाना फ़ेंक रहा है,यह मनुष्य कुत्ते से भी गया बीता हो गया है,कुत्ता कम से कम एक साथ हो कर दुश्मन से मुकाबला करते है यहां तो मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन हो रहा है। एक मनुष्य को लूटने के लिये एक मनुष्य आराम से हथियार थामता है और बडी ही बेदर्दी से उसे मार कर उसका माल ले जाता है,तो चार मनुष्य उस मारने वाले मनुष्य के पीछे पडते है,लेकिन वह निकल जाता है,वह लूटे गये माल को अपने ऐशो आराम के लिये खर्च करता है उसे पता है कि उसके द्वारा लूटा गया माल एक मनुष्य की जान लेने के बाद मिला है,लेकिन उसे कोई फ़र्क नही पडता है कारण उस जैसे कितने ही मनुष्य लगातार दूसरों को लूटने का काम करते है,एक मनुष्य कोई साधन बना देता है दूसरे उस साधन का प्रयोग करना चाहते है तो मनुष्य से ही कतार लगाने को कहता है,अगर मनुष्य कतार नही लगाता है तो मनुष्य को साधन का मिलना भारी पड जाता है,मनुष्य उस भगवान के मन्दिर में जाता है जहां दर्शन करने के बाद मनुष्य सोचता है कि उसे भगवान कुछ अच्छा प्रदान कर देंगे,वह दूसरों के देखने के अनुसार वहां जाता है भगवान के दर्शन करने के लिये लाइन लगाता है दूसरा मनुष्य जो वहां के पुजारी के रूप में है वह कहता है दर्शन करने के लिये टिकट लेलो,जल्दी दर्शन हो जायेंगे,वह मनुष्य को पागल बना रहा है कि भगवान के दर्शन टिकट लेकर हो जायेंगे,वाह रे मनुष्य तेरी लूटने की क्रिया,अपने द्वारा ही अपनी माया फ़ैला दी और खुद ही भगवान का दर्शन करवाने के लिये टिकट काटने लगा,इसके बाद जब तीर्थ में नहाने के लिये गये तो पता लगा कि पहले किसी अलावा जाति के मनुष्य के स्नान होंगे,वह मनुष्य पहले नहायेगा,कारण उसके हो सकता है कि जन्म लेने के पहले एक हाथ की जगह चार हाथ लग गये हो,उसके पास दो मुंह बोलने के लिये हों,लेकिन ऐसा कुछ भी समझ में नही आया,जितनी माया जिस मनुष्य को आती है वह उतना ही बडा बनने और दिखाने की कोशिश करता है,मनुष्य की अर्धांगिनी नारी का भी बुरा हाल है,वह जाति जाति के अलग मनुष्य पैदा करने के लिये अलग अलग तरह के साधन बनाती है,वह जानती है कि उसके साधन बनाये बिना कोई मनुष्य उसकी तरफ़ आकर्षित नही होगा और जब आकर्षित नही होगा तो वह आगे की संतान कैसे पैदा कर पायेगी,एक मनुष्य अपनी पत्नी के पास जाता है वह उसे पति का दर्जा देती है और कहती है कि उसके बिना कहीं नही जायेगी लेकिन मनुष्य के बाहर जाते ही वह अपने कामों के अन्दर मस्त हो जाती है तरह तरह के बहाने बनाती है सुबह को मनुष्य रूपी यार से मिलने के लिये भगवान के मन्दिर जाने का बहाना करती है और आगे जाकर कार के अन्दर वासना की भूख को पूरा करती है बडे आराम से घर आ जाती है अपने कथित पति मनुष्य को खूब खिलाती पिलाती है और खुद भी खूब खाती पीती है नवे महिने संतान को जन्म देती है,पति रूपी मनुष्य पत्नी के यार की संतान को अपनी संतान कह कर पालने लगता है उसके लिये व्यवसाय करता है उसके लिये  बाजार में झूठ बोलता है,उसके लिये कपट करता है बाजार से सामान लाकर उसे खिलाता पिलाता है मनुष्य के अंश को पालने के लिये और मनुष्य जाति के बच्चे को आगे बढाने के लिये वह कई कोशिशों को करने के बाद उसे बहुत बडा मनुष्य बना देता है,मनुष्य को कई भाषायें आती है कोई हिन्दी बोलता है कोई अन्ग्रेजी बोलता है लेकिन जो अन्ग्रेजी बोलता है वह बडा मनुष्य कहलाता है कारण हिन्दी बोलकर कोई काटने नही देगा लेकिन अंग्रेजी बोलकर आराम से काट लेगा,मनुष्य का बच्चा कितना गंदा है,इसके साथ ही इतने सारे मनुष्य अगर आपस में दुश्मनी बनाकर चलते है तो भी एक साथ रहते है जानवर कभी भी दुश्मन को साथ नही रहने देता है,वह देखता है कि सामने वाला खतरनाक है तो वह फ़ौरन मार ही देता है लेकिन मनुष्य फ़िर भी साथ रहता है। मनुष्य जब मनुष्य को मारता है तो उसे मजा आता है,वह देखना चाहता है कि मनुष्य को मरते हुये कितना दर्द होता है,मनुष्य जब दर्द से चिल्लाता है तो वह मन ही मन में खुश होता है,अधिक चिल्लाहट को कोई सुन नही सके इसलिये उसे बन्द कमरे में रखा जाता है,वह सड सड कर मरता है,मनुष्य के बूढा होने पर उसके पुत्र पुत्री आदि पालने की जिम्मेदारी लेते है लेकिन दूसरे घर की बहुये जो मनुष्य की ही कन्यायें है वे आकर अपनी चाल से सभी बुड्ढों को दूर भगा देती है,अरे वाह रे मनुष्य की संतान,अपनी ही जाति के मनुष्य से नही बन रही है,अपने ही जैसे हाथ पैर वाले की दुर्दशा करने में बहुत मजा आ रहा है,अपने ही खून को काटने पर कतई दर्द नही हो रहा है,अपने जैसे हाव भाव विचार रखने वाले पर डंडा बरसाते हुये दर्द नही हो रहा है,अपने ही जैसे माता पिता से जन्मे व्यक्ति को तू फ़ांसी दे रहा है,कैसा हे रे तो मनुष्य क्यों बनाया था तुझे ई़श्वर ने,वह एक खिलौना बनाकर छोड देता और मनुष्य की जगह पर किसी गंदे कीडे को पैदा कर देता तो आराम था,कम से कम आपस के ही जीव को आपस में मरते कटते देख दर्द तो नही होता।

1 टिप्पणी:

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’