मंगलवार, 21 जून 2011

अक्षर क

क अक्षर को क वर्ग का पहला अक्षर कहा जाता है। क कर्म का कारक है। ककहरा शब्द हिन्दी वर्णमाला को समझने के लिये कहा जाता है। क अक्षर निर्जीव है,जब तक कोई अन्य अक्षर क अक्षर को सहारा नही देता है तब तक यह शक्ति हीन ही है,केवल बीज के रूप में ही माना जायेगा। क अक्षर का उच्चारण करते समय गले का प्रयोग किया जाता है,बोलते समय सूक्षमता को दीर्घता की तरफ़ ले जाने के लिये क ख ग घ ड. का प्रयोग किया जाता है। बारहखडी में अक्षर को शक्ति से विभूषित कर दिया जाता है,शक्तियां मात्रा के रूप में प्रयोग में ली जाती हैं। किसी भी अक्षर को केवल बीज रूप में ही बोलने या लिखने के समय उनका बल आपस के संयोग से बीज रूप में ही प्राप्त होता है,मंत्र शक्ति को मात्रा के रूप में लिये बिना किसी भी अक्षर का प्रयोग व्यर्थ ही माना जाता है। जैसे क में आ का प्रयोग करने पर का का रूप बनता है,इस का में किसी भी अन्य बीच को मिलाने से शब्द का निर्माण किसी न किसी उद्देश्य के रूप में प्रस्तुत होता है। काग से मतलब है कि गले से आवाज निकालने वाला काले रंग का काग बन जाता है,लेकिन कौआ आकाश में विचरण करने वाला दोनो पंख फ़ैलाकर उडकर आगे की ओर ही बढने वाला काले रंग का पक्षी बन जाता है। अं का बिन्दु जब क के साथ जुडता है तो वह चेतना हीन और पृथ्वी तत्व से जुडा माना जाता है,लेकिन उस तत्व का रूप पहले जीवित अवस्था को भी सूचित करता है,जैसे कंकाल। इस शब्द में कं हड्डी के रूप में जो काल से कवलित हो गया को कंकाल बोला या लिखा या समझा जायेगा। इसी शब्द में बीज को बदलने पर कंगाल शब्द को भी समझिये,हड्डियों में चिपके हुए गाल,जो शक्तिहीन है और कुछ भी करने से दूर है। बिन्दु को प्रयोग करने पर क अक्षर को अधिकतर नाम करण करते समय बचा ही जाता है। बिन्दु के लगने के बाद यह अक्षर ममत्व से हीन हो जाता है। जब ममत्व नही है तो कोई भी तत्व क्रूरता की श्रेणी में अपने आप विलीन हो जाता है,नाम कंस को विच्छेद करने पर क +अंश का ही रूप मिलेगा,जब क अक्षर का अंश ही प्रयोग में लाया गया तो वह क्रूरता की श्रेणी में चला गया। क अक्षर पर बिन्दु के सवार हो जाने पर चाहे वह कंकाल हो या कंगाल हो कंकड हो या कंचन हो सभी में ममता की हीनता का असर तो मिलता ही है। क अक्षर को माँ काली का बीज कहा जाता है। और जहां भी प्रयोग में लाया जाता है किसी न किसी प्रकार से प्रश्न को पैदा करने के लिये अपना महत्व रखता है। शब्द कल में देखने को मिलता है कि गुजरा हुआ कल है या आने वाला कल है,कमल में देखने को मिलता है कि वह क्या मल से उत्पन्न है । कंचन से भी समझना पडता है कि वह क्या वह आग से तपाया हुआ है। इस अक्षर पर छोटी इ की मात्रा के लगते ही यह बहुत बलवान उसी प्रकार से हो जाता है जैसे शव शब्द में शिव का रूप बनता है। वाक्य के बीच में कि का प्रयोग करने पर भावार्थ को भी समझाना पडता है,जैसे मेरे कहने का उद्देश्य है कि मैं क्या कह रहा हूँ ? कितना किसी का किसलिये किशोर किनारा किशोरी किलोल किच किच किला किटकिटाना आदि शब्दों को परखने पर मात्रा इ का महत्व क के साथ समझ में आजाता है।

1 टिप्पणी:

renu ahuja ने कहा…

saadar praaanam guru jee.!

itnaa gyaan waan lekh...

beej aakshar
-maatraa kaa shakti roop me pryog-
Ang- anuswaar kaa sangam aur mool beej akshar kaa arth hi badaal gaya..

aisee anmol gyaan ki baat pad kar mai to dhanya ho gayi hoon guru jee.....

Jyotish lekh to aapkey gyaan kaa oottam star dikhaatey hi hain....

per aisaa lekh jeevan-maran-aura shakti roop ke sambandh ko dikhaataa hai...

taarif ke liye shabd kam hai sach to ye hai ki sharadhha se natmastak hoon.
-charan vandnaa guru ji.