सोमवार, 20 जून 2011

अक्षर

जिसका क्षरण नही हो सकता है अक्षर कहलाता है। किसी भी भाषा का बना हो,किसी भी देश में लिखा या बोला जाता हो अक्षर ही अपनी योग्यता को शब्द बनाकर दिखलाने का काम करता है। मान लीजिये गाली एक शब्द है और गाली में ग आ ल और ई अक्षरों का प्रयोग किया गया है,अब ग का उच्चारण किया तो गले से ही निकलेगा आ का उच्चारण किया तो मुंह पूरा खोलना ही पडेगा,ल का उच्चारण किया तो लपलपी जीभ को प्रयोग में लाना ही पडेगा और ई का प्रयोग करने पर सभी मुंह के अंगो के साथ शरीर की भी गति को संभाल कर बोलना पडेगा,तभी केवल गाली शब्द को बोलना पडेगा। अब खतरनाक गाली है तो गले की नौबत है,थोडी कम खतरनाक है तो मुंह को बाजा की तरह बजाने का कारण बन सकता है,अन्यथा बदले में ली तो जायेगी ही चाहे वह इज्जत के रूप में हो या औकात के रूप में इसलिये गाली शब्द को बडी गम्भीरता से बनाया गया होगा,लेकिन अक्षर का चुनाव करने के समय कितना दिमाग पूर्वजों ने लगाया होगा इसका भी अनुमान लगाना बडा कठिन काम है। बावन अक्षर वेदों मे नियत किये गये है,अन्ग्रेजी में तो केवल चौबीस अक्षर ही प्रयोग में लाये गये है,अक्षरों को मिला मिलाकर कितने करोड शब्द बन गये कि उनकी गणना करने में कितना समय लगेगा। म अक्षर के शुरु में लगने से किसी प्रकार की ममता का भान तो होना ही है,जैसे महान म हान में नही होता तो वह बेकार ही था,म के लगते ही हान महान हो गया। कर में म के लगते ही मकर हो गया,यानी म नही लगती तो केवल कर यानी कर्म रह जाता या कर यानी हाथ का ही रूप होता। इसी प्रकार से मचल को ही देख लीजिये म नही होता तो चला चली का ही खेला था,क्या फ़ायदा था जो मचलना भी नही हो पाता। ध्वनि का कारण अक्षर से ही सम्भव है। जो ध्वनि हमारे शरीर से पैदा की जाती है उस ध्वनि को निकालना और सुनना बहुत ही महत्व की बात है। गला जीभ तालू होंठ दांत सभी अक्षर पर ही निर्भर है। ग से गला ज से जीभ त से तालू द से दांत और बिना किसी इन अंगो के प्रयोग के ह तो बोला ही जा सकता है। इसी लिये कहा जाता है कि हंसने के लिये किसी भी अंग को श्रम नही करना पडता है वह हंसा सिर्फ़ ह्रदय से ही जा सकता है लेकिन रोने के लिये जीभ को थर्राना जरूरी है और नाक मुंह तालू सभी को काम करना पडता है,अब बताइये अक्षर हंसने में अच्छे लगते है या रोने में। जो लोग हमेशा रोते ही रहते है वे सही है या जो लोग हमेशा हंसते रहते है वे ही अच्छे है,हंसने वाले ह्रदय से काम लेते है और रोने वाले अपने शरीर को काम मे लेते है शरीर से काम लेने वाले तो गलत काम भी कर सकते है लेकिन ह्रदय से काम लेने वाले कभी गलत काम भी नही कर सकते है। क्ष अक्षर की विशेषता को समझने के लिये किसी को तो बरबाद करना ही पडेगा,जैसे अच्छी भली लार मुंह में आ रही थी,क्ष को कहते ही तालू को सुखाना जरूरी हो गया,उसी तरह से अ को कहने से ही किसी न किसी को तो आना ही पडेगा चाहे वह भावना का आना हो या इन्सान का अथवा जानवर को पुकारने के समय अ अक्षर अपना काम तो करता ही है। आप भी सोच कर देखिये,इसमें कोई पाप नही नही है।

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