गुरुवार, 18 नवंबर 2010

माता की भूमिका जिन्दगी में

एक चुटकला सुना था,एक श्रीमानजी आफ़िस से जल्दी घर आ गये। लंच का समय था,लेकिन जल्दी घर आने की बजह से लंच नही किया,सोचा घर जा रहे है तो घर पर ही जाकर लंच कर लेंगे। वैसे भी आफ़िस के अन्दर लंच लेने का मजा नही है हर कोई अपनी अपनी टेबिल पर लंच का डिब्बा खोल कर बैठ जाता है और फ़ाइलों की आड में चुपके से अपने अपने लाये डिब्बों को खाली करने लग जाता है। डिब्बे खाली करने के बाद थोडा सा टहलने की आदत के कारण या तो आफ़िस के बाहर किसी पान की दुकान या फ़िर सर्दी है तो धूप के अन्दर बैठ कर या तो कुछ गप्पें हांकी जाती है या फ़िर किसी कर्मचारी के प्रति चुगली की जाती है। घर में आकर देखा तो श्रीमती जी स्वेटर बुनने में लगीं थी,उनका ध्यान घर से अधिक उस स्वेटर पर था या किन्ही ख्यालों के अन्दर था यह तो पता नही चला लेकिन इतना जरूर दिखाई दिया कि वे अपने काम में मशूगल थी,और उन्हे उनके पति के आने या नही आने से कोई फ़र्क नही पडा। कपडे आदि उतार कर उन्होने आराम कुर्सी को श्रीमती के पास खिसकाया और बोला कि भूख लगी है लंच बाक्स बैग में पडा है,खाना निकाल कर लगा दो। श्रीमती जी ने अपने स्वेटर की तरफ़ ध्यान देकर कहा कि थोडा सा रुको अभी लगाती हूँ। इतना कहकर वे अपने काम में लग गयी,उनके पति देव ने पास में पडे न्यूज पेपर को उठाया और उसमे खोजी नजर से समाचारों और फ़िर विज्ञापनों को देखने में लग गये,लगभग आधा घंटा हो गया होगा,उन्होने फ़िर अपनी श्रीमती जी से कहा कि भूख लगी है,खाना लगा दो,श्रीमतीजी ने फ़िर उसी अन्दाज में कहा कि थोडा सा रुको अभी लगा देती हूँ,वे यह सोचकर चुप रह गये कि कोई बडे जटिल फ़ंदे स्वेटर में होंगे इसलिये वे कहीं उन फ़ंदों को भूल नही जायें इसलिये थोडा रुकने को बोल रही है। श्रीमानजी उठे और जाकर बिस्तर पर लेट गये और आंखों को बन्द करने के बाद अगली पिछली बातों में खो गये,आधा घंटा हुआ होगा,देखा बच्चा स्कूल से आगया और आकर अपने बस्ते को कहीं फ़ेंका जूते कहीं और जुर्राब कहीं,चिल्लाकर बोला मम्मी भूख लगी है,और जाकर सीधा भोजन वाली टेबिल पर बैठ गया। श्रीमती जी ने अपने स्वेटर को एक जगह पटका और सीधी जाकर रसोई में गयीं और भोजन को परोसने लगीं,उन्होने अपने पति को आवाज दी,भोजन तैयार है आजाइये,श्रीमानजी उठे और जाकर भोजन की टेबिल पर बैठ गये। उन्होने भोजन करते हुये श्रीमती से प्रश्न किया कि उन्होने दो घंटे पहले से दो बार खाना लगाने के लिये कहा लेकिन भोजन नही लगाया,लेकिन बच्चे के आते ही भोजन कैसे लग गया,श्रीमती जी ने जबाब दिया कि देखिये आपका और हमारा सामाजिक सम्बन्ध है और बच्चे का मेरा खून का सम्बन्ध है,जितनी ममता और दया बच्चे के लिये होगी उतनी तुम्हारे लिये नही होगी,इतना सुनकर श्रीमानजी को समझ में आ गया कि बच्चा माता को क्यों प्यारा होता है.

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