घर के बाहर जाते ही कई प्रकार के अनुभव सामने आते है कभी कभी यह भी महसूस होता है कि यह सब क्या हो रहा है ? क्यों लोग अपने अपने अनुसार आपाधापी की जिन्दगी जिये जा रहे है। एक द्रश्य मे एक कसाई अपने हाथों से जानवर का गला सरे आम सडक के किनारे रेत रहा है,जानवर तडफ़ रहा है आने जाने वाले देख रहे है और अपने अपने अनुसार सोच कर चले जा रहे है,कोई तो अपने आंखों को बन्द कर ले रहा है कोई नाक पर कपडा रख लेता है कोई मनोरंजन से उसे देख रहा है और कोई उसे खाजाने वाली नजर से देख रहा है। इस द्रश्य को देखने के बाद जो हालत सांसों की होती है उसके ऊपर शायद ही कोई अपना ध्यान दे पाया हो। गलत कार्य आंखों से देखा जाता है और सांसो की गति बदल जाती है,या तो भय से सांस की गति तेज हो जाती है या व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले अपराध बोध और जानवर के द्वारा तडपने के कारण दया भाव का बोध आने से भी सांस की गति बदल जाती है,इस बदली सांस का प्रभाव ह्रदय के साथ मस्तिष्क पर भी पडता है,और जाने अन्जाने इस द्रश्य की आवाजाही अचेतन मन के अन्दर होनी शुरु होती है,कई बार तो देखा है कि यह अचेतन मन उस घटना को भुला नही पाता है,और जब भी इस प्रकार की याद दिमाग के अन्दर आती है मन के अन्दर अक्समात ही विचलन पैदा हो जाती है,उस समय भी आंखों के सामने वही द्रश्य उभर जाता है और सांसों की गति वापस बिगद जाती है।
यह बिगडी हुयी सांसों की गति अपने अनुसार जीवन की गति के लिये खतरनाक होती है,जो रक्त मस्तिष्क के लिये जाता है उसके अन्दर सांस की ताजगी के नही जाने से या कम अधिक जाने से मस्तिष्क का भाव बदल जाता है,और के प्रकार की कुंठा दिमाग में भर जाने से आजीवन के लिये एक अन्चाहा रोग शरीर में पैदा हो जाता है,इस रोग का ही दूसरा नाम भय है,अगर आपको रोजाना घी बादाम खिलाये जाये और शाम को आपको कोई भय दे दिया जाये तो वह भय सभी घी और बादाम की ताकत को बरबाद कर देगा,लेकिन अब उनके बारे मे सोचते है जो इन बातों से कोई सरोकार नही रखते है और वे किसी भी माहौल में सुखी रहते है। एक व्यक्ति की मौत की खबर सुनकर एक श्रीमान आये और अपने द्वारा सभी को देखने के बाद मरी हुयी देह का निरीक्षण करने लगे,थोडी देर उन्होने उस देह को देखा और पास में खडे एक सज्जन से बोले कि जल्दी से अन्तिम यात्रा का सामान इकट्ठा करवाओ नही तो शव फ़ूलने लगा है और कुछ देर बाद यह सडन पैदा करना शुरु कर देगा और बदबू मारने लगेगा। लोग उन सज्जन की बात को बल देते है और जल्दी से अन्तिम यात्रा का सामान इकट्ठा किया जाने लगता है और वह शव समय पर शमशान या कब्रिस्तान में पहुंचा कर क्रिया कर्म कर दिया जाता है। उन सज्जन के साथ ऐसा कुछ भी नही हुआ,इसका कारण एक और माना जाता है कि उन सज्जन के द्वारा एक ही नही कई कारण देखे गये है और उन्हे पता है कि एक दिन मरना सभी को है,उन्हे मरने जीने का ज्ञान प्राप्त हो चुका है,कई बार कोई घटना देखने के बाद भी दिमाग में कोई भय वाली बात नही रहती है इस बात को मानने केलिये भी एक उदाहरण और आपके सामने प्रस्तुत है,एक कसाई की दुकान चलाने वाले का लडका जिसकी उम्र लगभग सोलह साल की है,उसके पास कोई चिकन लेने के लिये आता है वह बडे आराम से पिंजडे से एक मुर्गे को निकालता है अपने हाथ से उसकी मुंडी को तोड कर कचडे में डाल देता है,कुछ समय बाद उस मरी हुयी देह को उठाता है छीलता है साफ़ करता है और अंजर पंजर साफ़ करने के बाद तराजू में रख तौलता है और मांगने वाले को थैली में पैक करने के बाद दे देता है। उस बच्चे के चेहरे पर भी कोई भय के भाव नही है,लेकिन उसी समय नगर पालिका की गाडी आती है और वह अपने पूरे सामान को समेटने के लिये भय से भागने लगता है और सभी मुर्गों को एक तरफ़ लेजाकर रखता है अपने सामान को इकट्ठा करता है और तब तक भय से जूझता रहता है जब तक कि नगरपालिका की गाडी उस स्थान से चली नही जाती है। जब वह जीव की हत्या कर रहा था तो उसे कोई भय इसलिये नही था क्योंकि वह बचपन से अभी तक की उम्र में मुर्गो और जानवरों का काटना देखता आया है,और उसे पता है कि वही इसके कमाई के साधन है वह अगर इस काम को नही करेता तो उसके पास शाम को भोजन या अन्य घर के खर्चों के लिये धन नही होगा,धन के लिये वह हत्या जैसे कार्यों को कर रहा है,लेकिन जैसे ही नगरपालिका की गाडी आती है उसे डर लगता है कि उसका माल यानी जिन्दा और मरे हुये मुर्गे तथा उसके हथियार और सामान वह उठा ले जायेंगे और उसके लिये यह बडा नुकसान होगा,उसे डर लगा कि उसको धन की हानि होगी,यानी जीवन हानि से बडी लगी धन की हानि,डर लगा केवल धन की हानि का और उस कसाई की भी सांसों की गति उसी प्रकार से बदली जैसे कि जानवर का गला रेते जाने के समय में साधारण व्यक्ति की सांसों की गति बदली थी।
चिन्ता करने से भी सांस की गति बदलती है,आदमी अपने चिन्ता के समुद्र में इतना डूब जाता है कि उसे यह भी पता नही होता है कि दिन कब खत्म हो गया है रात कब चालू हो गयी है और कब उसे यहां से कहां जाना है आदि। इस चिन्ता के कारण जितनी गहरी सोच वह सोच रहा था उतनी गहरी सोच में जो भाव उसके दिमाग में आ जा रहे थे,उनके क्रिया और अनुसरण के हिसाब से सांसों की गति कितनी तेज और कितनी मन्द हुयी थी उसका भी उसे पता नही है,जितनी देर सांसों की गति मन्द रही उतनी देर उसके ह्रदय ने रक्त वाहिनी नशों को मन्द रखा उसके शरीर की शक्ति का ह्रास धीरे धीरे कम होने लगा,अचानक उसके दिमाग में जो चिन्ता की जा रही थी उसके अन्दर कोई नया विचार आया और विचार के आते ही सांसों की गति अचानक तेज हो गयी शरीर के अन्दर अचानक फ़ुर्ती जैसा भाव पैदा हो गया,लेकिन वह जहां बैठा है और सोच रहा है उस स्थान पर होने के कारण जो भाव उसके अन्दर पैदा हुआ था वह क्रियात्मक रूप में किया नही जा सकता था इसलिये उसे वापस उन्ही चिन्ताओं में जाना पडा इस प्रकार से चिन्ता करने के कारण खून का प्रवाह कम हुआ ह्रदय ने जो कार्य करना था नही किया शरीर के अन्दर भूख प्यास नही लगने से खनिज तत्वों की कमी हो गयी,अधिक सोचने से और पानी की मात्रा कम होने से शरीर के अन्दर जो तेजाब बना था वह किडनी और मस्तिष्क की तरफ़ अधिक प्रवाहित हुआ,परिणाम में या तो किडनी खराब हो गयी,या शरीर के अन्दर बनने वाले इन्सुलन में कमी आ गयी अथवा दिमाग में अधिक तेजाब चढने के कारण दिमाग ने कार्य करना बन्द कर दिया और पागलपन के दौरे पडने लगे,अथवा हिस्टीरिया आदि जैसे कारण सामने आने लगे,अक्सर सामयिक चिन्ताओं के कारण जब व्यक्ति आहत होता है तो किडनी के अन्दर पत्थर बनने लगते है डाक्टर कहते है कि पत्थर बनने का कारण भोजन का सही रूप में नही लेना है लेकिन मैने जो अनुभव किया है उसके अनुसार जब व्यक्ति अधिक चिन्ता करता है तो उसके अन्दर बनने वाले तेजाबी कारणॊं से जो खनिज शरीर के अन्दर होते है वे पत्थर का रूप लेकर धीरे धीरे किडनी में उसी प्रकार से जमा होने लगते है जैसे किसी हिलने वाले बर्तन को अगर लगातार हिलाते रहा जाय तो जो भी कैमिकल उसके अन्दर मिले है वे अलग नही हो पाते है और उसे स्थिर करने के बाद रख दिया जाये तो वे कैमिकल एक स्थान पर जमा होने लगते है.
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