मंगलवार, 16 नवंबर 2010

वक्री गुरु

घरेलू कार्यों के अन्दर सभी कार्य सही होते जायें तो कोई दिक्कत नही होती है और जैसे ही कोई कार्य गलत या खराब होजाता है तो सांस की गति उल्टी शुरु हो जाती है,अक्सर कहा जाता है कि उसकी तो सांस ही घूम गयी,सांस को घूमने में सहायता करने वाले और कोई नही अपने ही तत्व सामने होते है,भौतिक वस्तुओं की गिनती इस श्रेणी मे नही आती है केवल जीवित कारकों के लिये ही यह कारण सोचना पडता है।

कल तक जो पुत्र बहुत ही अच्छी पढाई कर रहा था और उसके बाद जाने अचानक क्या हुआ कि वह अपने पथ से दूर जाने लगा उसका पढाई से दिमाग बिलकुल बदल गया और वह अपने साथियों की बुरी सन्गति में आकर घूमने लगा,उसका दिमाग पढाई से कतई दूर हो गया। जब इस प्रकार की बात पिता और माता ने या घर के बडे सदस्य ने देखी तो उनका भी दिमाग घूमने लगा,और उन्होने उस बच्चे के साथ व्यवहार में परिवर्तन करना शुरु कर दिया,जो उसका ख्याल अच्छे कार्यों की बजह से रखा जा रहा था वह अब बिलकुल ही बदल गया,उसके प्रति जो भी सोच हुआ करती थी वह बिलकुल बदल गयी,यह सब होने का कारण था कि सांस बदल गयी। इस सांस का ही दूसरा नाम हवा है,हवा जो प्राण वायु के रूप में जानी जाती है और इस हवा के बिना धरातल तो क्या जल और आकाश में भी जीवन संभव नही है।

गुरु हवा का कारक है और गुरु के अनुसार ही जीवन की गति चल रही है किसी को यह किस प्रकार की हवा में जिन्दा रखता है और किसी को यह किस तरह की हवा में जिन्दा रखता है यह उस व्यक्ति या जीव के पिछले कर्मों पर आधारित बात ही मानी जा सकती है। कर्म जो पहले किये गये है पिछले जीवन को तो किसी ने देखा नही केवल अपनी अपनी राय से बताया करते है और पुराणों या वेदों में जो लिखा है वह अनुभव की बात भी मनी जा सकती है कारण जब कल की बात नही मानी जा सकती है तो उतनी पुरानी बात को माना भी कैसे जा सकता है,कहा जाता है कि रावण के पास पुष्पक विमान था लेकिन हमने देखा नही है और वह मन की गति के अनुसार चला करता था यह भी हमने नही देखा है लेकिन आज जो सामने विमान है वे उंगलियों के इशारे से तो चलते है और मन के इशारे से भी चलने लगेंगे अगर इसी प्रकार से तकनीक का विकास चलता रहा तो। उसी प्रकार से कल की बात को मानने के लिये आज की बात को भी देखना पडेगा और कल के लिये जो सोच थी उसे आज करके भी दिखाना पड सकता है। उसी प्रकार से यह भी माना जा सकता है कि कल जो किया है वह कल अपने को दिखाई देने लगेगा। कल अगर आम का पेड बोया है तो कल उसके अन्दर परिस्थितियां अगर सही रही तो आम जरूर खाने को मिलने लगेंगे।

गुरु जब अपनी गति से वक्री होता है तो प्राण वायु का रूप बदल जाता है जो व्यक्ति रिस्तों नातों को अपने समाज और मर्यादा के अनुसार चलाना जानते थे वे ही मर्यादा से बाहर होकर अपने को चलाने लगते है जिनके घरों में कभी कोई बुरा कार्य नही हुआ उनके घरों में बुरे काम होने लगते है इसलिये ही कहावत कही जाती है कि बडी बात को नही कहना चाहिये कारण घर घर में मिट्टी की इमारते ही है भले ही आज के अनुसार उस मिट्टी को पका कर दिवाले बना ली गयी हो लेकिन कालान्तर के बाद वे होनी मिट्टी ही है। जब आदमी का समय बदलता है भला ईमानदार भी बेईमानी करने लग जाता है और जब समय बदलता है तो बेईमान भी ईमानदार से अधिक अपनी औकात दिखाने लगता है जिसे आदमी अपनी बुद्धि और विवेक से कार्य करना और नही करना मानता है उसे करवाने के लिये गुरु यानी प्राण वायु ही जिम्मेदार मानी जा सकती है। हर किसी के अन्दर सभी तत्व विद्यमान होते है और हर कोई अपने अपने माहौल में अपने को सुरक्षित रखना जानता है लेकिन हवा के घूमते ही वह अपने को कहां से कहां ले जाता है उसका पता उसे तब चलता है जब वह अपने काम को या तो बिगाड चुका होता है या फ़िर अपने कार्य को बना चुका होता है।

आदमी अपने अनुसार ही सभी काम करता है और अपनी अपनी बुद्धि को घुमाकर ही काम करता है जो लोग बक्री गुरु के अन्दर पैदा होते है उनही बुद्धि हमेशा उल्टी ही चला करती है और वे जिस भी समाज में पैदा होते है उनकी सोच अपने समाज व्यवहार और मर्यादा से विपरीत दिशा में ही चला करती है,अक्सर लोगों के दिमाग में ख्याल आता है कि व्यक्ति बहुत ही नेक खान्दान मे पैदा हुआ है और इसके बाप दादा बहुत ही अच्छी पोजीसन में अपने समाज और परिवार को लेकर चलने वाले थे,लेकिन इस व्यक्ति के साथ ऐसा क्या है जो यह समाज और परिवार के विपरीत ही बात कर रहा है। यह सब बक्री गुरु का प्रभाव जातक के लिये पैदा होता है,अगर शनि बक्री है तो जातक के द्वारा शनि वाले मेहनत के कार्य करने की अपेक्षा दिमागी कार्य करने के अन्दर ही मन लगेगा,लेकिन गुरु के बक्री होने से कार्य भी और व्यवहार भी सभी कुछ विपरीत दिशा की तरफ़ भागना शुरु कर देंगे। यह बात उन लोगों के लिये भी सोचने के काबिल होती है जो पैदा होते है धार्मिक परिवारों में और अक्समात उनका रुझान स्वार्थी तत्वों में चला जाता है। स्वार्थी होने के कारण उनका रूप समाज परिवार से भिन्न हो जाता है और एक दिन वही समाज और परिवार उन्हे दूर फ़ेंक देता है,जब अपने समाज और परिवार तथा शिक्षाओं से दूरिया मिलने लगती है तो व्यक्ति को बाहर के समाज में जाने और दूर जाकर अपनी हैसियत बनाने की लगती है। इन्ही कारणो से व्यक्ति अपने को दूर देशों में कालान्तर के लिये बसा लेता है,अथवा वह खुद भी नहीं जाना चाहे तो गुरु जो शिक्षा का कारक है अपने कारकों से जातक को अपने समाज और देश की शिक्षाओं से दूरिया देकर दूसरे देशों और दूसरे कारकों की तरफ़ रुझान दे देता है। जब व्यक्ति की मर्यादा और समाज से रुचि नही मिलती है तो अक्सर इस बक्री गुरु के कारण व्यक्ति को नर संतान का सुख नही मिल पाता है,या तो नर संतान होती ही नही है और होती भी है तो वह सुख नही दे पाती है जो समाज या संस्कृति के अनुसार मिलना चाहिये।

1 टिप्पणी:

maxblue ने कहा…

Guru jee Pranaam !

Aapke vichar kafi sidhi-saral aur jankari se puran hote hai, in vicharo ke liye aapko koti-koti dhanywaad.Asha hai aap vakri guru ke baare mai bataane ka aur kast karenge,Tab kya hota hai jab guru lagan mai khud ke hi rashi mai baithe kar vakri ho jata hai.