रविवार, 14 नवंबर 2010

ध्यान को समेटने की क्रिया

मन रूपी घोडा बिना लगाम का घोडा है,अथवा आज के जमाने के अनुसार कहा जाये तो यह बिना स्टेयरिन्ग और ब्रेक की गाडी है,यह कब कहाँ लेजाकर पटगेगा या पटकेगी कोई पता नही होता है। मन को साधने के लिये बुद्धि का प्रयोग करना पडता है और बुद्धि को साधाने के लिये ह्रदय का और ह्रदय को साधने के लिये योग का प्रयोग करना पडता है। ह्रदय की हर धडकन का प्रभाव अपने अपने अनुसार शुरु हो जाता है,आज की आपाधापी के अन्दर इसे इतनी बार अधिक और कम धडकने की आदत हो गयी है कि जरा सी टेंसन आते ही यह या तो अधिक तेज चलना शुरु हो जाता है या फ़िर बैठता ही चला जाता है। बडे बडे अस्पताल इसकी चीराफ़ाडी कर डालते है और बेचारा कुछ समय के लिये अपने अनुसार चलता है फ़िर कोई न कोई धम से बात बन जाती है और फ़िर इसकी हालत वहीं की वहीं शुरु हो जाती है,इसका और भी बुरा हाल तब और हो जाता है जब आज के जमाने के कृत्रिम प्लास्टिक के वाल्व लगाकर इसे चलाने की क्रिया की जाती है,जब इसके अन्दर कृत्रिमता का प्रभाव लगा दिया गया है तो वह अनुभव करने से तो गया,अब वह बुद्धि को क्या सम्भालेगा,इसे सम्भालने के लिये तो दूसरों की बुद्धि ही काम कर पायेगी,खुद की बुद्धि तो कृत्रिम हो जायेगी,रोजाना सुबह जागकर एक प्लेत दवाइयों का आहार लेना पडेगा,दोपहर को बिना तेल नमक की सब्जी खानी पडेगी,और शाम को फ़िर सोते समय की डिनर दवाइयों की लेनी पडेगी। यह सब क्यों हो रहा है ? इसका कारण भी हमें पता है,हम अपने ध्यान को इकट्ठा नही कर पा रहे है,जैसे ही हम अपने ध्यान को इकट्ठा करने में कामयाब होने लगेगे हमारा ह्रदय सुचारु रूप से काम करना शुरु कर देगा। ह्रदय को सही चलाने के लिये योग की जरूरत पडती है,योग भी ऐसा हो कि हर कोई अपने अपने घर पर अपनी आफ़िस में अपने अपने मनोरंजन के स्थान पर आराम से करना शुरु कर दे,वह कोई जटिल नही हो।

योग को करने के लिये कोई विशेष हथियारों या दवाइयों की जरूरत नही पडती है लेकिन इतना ध्यान रखना चाहिये कि पेट के भरे होने पर योग नही होता है उस योग को करने के समय पेट को खाली होना जरूरी है। खाली पेट से जो भी योग किया जायेगा वह शर्तिया फ़लीभूत होगा। खाली पेट भी इतना नही होना चाहिये कि दो दिन से कुछ खाया ही नही गया हो। ह्रदय को अपनी गति में चलाने के लिये सहज योग की जरूरत पडती है,वैसे तो योगशास्त्र के अनुसार हजारों योग बताये गये है लेकिन सहज योग के मुकाबले में सभी योग एक तरफ़ रह जाते है। सहज योग को करने के लिये कोई विशेष शिक्षा या अभ्यास की भी जरूरत नही पडती है,बस पालथी मारकर या आराम की मुद्रा में बैठ जाओ और दोनो आंखों को बन्द करने के बाद द्रिष्टि को नाक के बीच में लाने की कोशिश करो,दो चार दिन दस पन्द्रह मिनट की मेहनत को करने के बाद द्रिष्टि सधने लगेगी,और जैसे ही द्रिष्टि सधे बन्द आंखों के सामने भी एक त्रिभुज का आकार बनने लगेगा,पहले वह गहरा काला होगा,फ़िर धीरे धीरे पीला होना शुरु हो जायेगा,और अधिक ध्यान दिया जाने लगा तो उसके अन्दर सफ़ेद रंग का प्रकाश भरने लगेगा और जैसे ही वह प्रकाश भरना शुरु हुया फ़िर आपके तन मन धन सभी तकलीफ़ों के अन्दर अपने आप आराम आने लगेगा,दिमाग स्थिरता से कार्य करना शुरु कर देगा,क्या गलत किया जा रहा है और क्या सही किया जा रहा है सभी का पता चलना शुरु हो जायेगा। इस प्रकार से ह्रदय को लगने वाले धक्के अपने आप कम होने लगेंगे,फ़िर यह ह्रदय लगातार मजबूती की तरफ़ बढने लगेगा,कोई भावनात्मक रूप से आपको प्रभावित नही कर सकता है कोई आपको ठग नही सकता है और कोई बीमारी आपके शरीर में व्याप्त नही हो पाती है।

2 टिप्‍पणियां:

Deepak Kumar ने कहा…

Likhne aur kehne se kucch nahi hoga, Dhayan Lagane ke liye Jitni Marji Koshish Karen par Puran Guru se Dikhsa ke Bina Na to Dhayan hi lagega and na hi Ander Diyva Parkash Najar Ayega, kya kehna hai pndit ji apka is bare me????

amit dixit kota ने कहा…

good but any mantra

or any role of oomh